पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Friday, 15 March 2013

सोइ कछु कीजै दीन-दयाल

सोइ कछु कीजै दिन दयाल।
जातें जन छन चरण न छाड़ें, करुणा-सागर भक्त-रसाल॥
सोइ कछु कीजै दीन दयाल।

इंद्री अजित बुद्धि विषयारत, मन की दिन-दिन उल्टी चाल।
काम, क्रोध, मद-लोभ-महाभय,-निसि नाथ रहत बेहाल॥
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल।

जाग-जुगति, जप-तप, तीरथ-ब्रत, इन मैं एकौ अंक न भाल।
कहा करौ, किहिं भांति रिझावौं, हौं तुम को सुंदर नंदलाल॥
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल।

सुनि सम्राट, सर्वज्ञ कृपानिधि, असरन-सरन, हरन, जग-जाल।
कृपानिधान, सूर कौ यह गति, कासौं कहै कृपन इहिं काल॥
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल। 

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