सोइ कछु कीजै दिन दयाल।
जातें जन छन चरण न छाड़ें, करुणा-सागर भक्त-रसाल॥
सोइ कछु कीजै दीन दयाल।
इंद्री अजित बुद्धि विषयारत, मन की दिन-दिन उल्टी चाल।
काम, क्रोध, मद-लोभ-महाभय, अह-निसि नाथ रहत बेहाल॥
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल।
जाग-जुगति, जप-तप, तीरथ-ब्रत, इन मैं एकौ अंक न भाल।
कहा करौ, किहिं भांति रिझावौं, हौं तुम को सुंदर नंदलाल॥
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल।
सुनि सम्राट, सर्वज्ञ कृपानिधि, असरन-सरन, हरन, जग-जाल।
कृपानिधान, सूर कौ यह गति, कासौं कहै कृपन इहिं काल॥
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल।
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