अवधू भूले को घर लावे।
सो जन हमको भावे, अवधू भूले को घर लावे॥
घर में योग, भोग घर ही में, घर तजि बन नहीं धावे।
बन के गए कल्पना उपजे अब धों कहाँ समावे॥
अवधू भूले को घर लावे॥
घर में जुक्ति, मुक्ति घर ही में, जो जीगुरु अलख जगावे।
सहज सुन्न में रहे समाना, सहज समाधि लावे॥
अवधू भूले को घर लावे॥
उनमुनि रहै ब्रह्म को चीन्हे, हरम तत्त्व को ध्यावे।
सुरत निरत से मेला करके, अनहद नाद बजावे॥
अवधू भूले को घर लावे॥
घर में बसत, बस्तु भी घर है, घर ही बस्तु मलावे।
कहै कबीर सुनो हो अवधू, ज्यों का त्यों ठहरावे॥
अवधू भूले को घर लावे॥
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