पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Tuesday 12 March 2013

एक सूर्य है एक सोम है...

भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार
कहो तुम्हारी जन्मभूमि का इतना ही विस्तार?

धरती को हम काटें छाटें,
तो उस अम्बर को भी बाँटें,
एक अनल है, एक सलिल है, एक अनिल संचार
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार

एक भूमि है एक व्योम है,
एक सूर्य है एक सोम है,
एक प्रकृति है, एक पुरुष है, अगणित रूपाकार
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार

ठौर ठौर का गुण अपना है,
ऋतुओं का कंपना-तपना है,
समशीतोष्ण एक रस हमको, होना है अविकार
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार. 

अलग अलग हैं सभी अधूरे,
सब मिल कर ही तो हम पूरे,
एक दूसरे का पूरक है एक मनुज परिवार. 

सोदर भी बैरी बनते हैं,
जब वे इधर उधर तानते हैं,
सुनो 'मागृधःकस्यस्विद्धनम' हो तुम उच्च उदार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.

स्वर्ण भूमि यदि अलग तुम्हारी,
तो हम भी लौहायुध-धारी,
कैसे हो सकता है फिर इस विग्रह का परिहार. 
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.

परित्राण का एक मन्त्र है,
विश्वराज जो लोकतंत्र है, 
सब वर्णों का, सब धर्मों का, जहां एक अधिकार. 
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार. 

एक देह की विविध अंग हम,
दुखें पुखें सब एक संग हम,
लगे एक के क्षत पर सबका स्नेह लेप सौ बार. 
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार. 

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