भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार।
कहो तुम्हारी जन्मभूमि का इतना ही विस्तार?
धरती को हम काटें छाटें,
तो उस अम्बर को भी बाँटें,
एक अनल है, एक सलिल है, एक अनिल संचार।
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार।
एक भूमि है एक व्योम है,
एक सूर्य है एक सोम है,
एक प्रकृति है, एक पुरुष है, अगणित रूपाकार।
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार
ठौर ठौर का गुण अपना है,
ऋतुओं का कंपना-तपना है,
समशीतोष्ण एक रस हमको, होना है अविकार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
अलग अलग हैं सभी अधूरे,
सब मिल कर ही तो हम पूरे,
एक दूसरे का पूरक है एक मनुज परिवार.
सोदर भी बैरी बनते हैं,
जब वे इधर उधर तानते हैं,
सुनो 'मागृधःकस्यस्विद्धनम' हो तुम उच्च उदार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
स्वर्ण भूमि यदि अलग तुम्हारी,
तो हम भी लौहायुध-धारी,
कैसे हो सकता है फिर इस विग्रह का परिहार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
परित्राण का एक मन्त्र है,
विश्वराज जो लोकतंत्र है,
सब वर्णों का, सब धर्मों का, जहां एक अधिकार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
एक देह की विविध अंग हम,
दुखें पुखें सब एक संग हम,
लगे एक के क्षत पर सबका स्नेह लेप सौ बार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
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भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार
ठौर ठौर का गुण अपना है,
ऋतुओं का कंपना-तपना है,
समशीतोष्ण एक रस हमको, होना है अविकार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
अलग अलग हैं सभी अधूरे,
सब मिल कर ही तो हम पूरे,
एक दूसरे का पूरक है एक मनुज परिवार.
सोदर भी बैरी बनते हैं,
जब वे इधर उधर तानते हैं,
सुनो 'मागृधःकस्यस्विद्धनम' हो तुम उच्च उदार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
स्वर्ण भूमि यदि अलग तुम्हारी,
तो हम भी लौहायुध-धारी,
कैसे हो सकता है फिर इस विग्रह का परिहार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
परित्राण का एक मन्त्र है,
विश्वराज जो लोकतंत्र है,
सब वर्णों का, सब धर्मों का, जहां एक अधिकार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
एक देह की विविध अंग हम,
दुखें पुखें सब एक संग हम,
लगे एक के क्षत पर सबका स्नेह लेप सौ बार.
भिन्न भिन्न यदि देश हमारे तो किसका संसार.
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