पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Saturday 9 March 2013

हे सागर संगम अरुण नील!

          अतलांत महा गंभीर जलधि-
          तजकर अपनी यह नियत अवधि
लहरों के भीषण हासों में,
आकर खारे उच्छवासों में
          युग-युग की मधुर कामना के-
          बंधन को देता जहां ढील!
          हे सागर संगम अरुण नील!

पिंगल किरणों-सी मधु-लेखा,
हिमशैल बालिका को कब देखा,
          कलरव संगीत सुहाती,
          किस अतीत युग की गाथा गाती आती
आगमन अनंत मिलन बनकर-
बिखराता फेनिल तरल खील!
हे सागर संगम अरुण नील!

          आकुल अकूल बनने आती,
          अब तक तो है वह आती, 
देवलोक की अमृत कथा की माया-
छोड़ हरित कानन की आलस छाया-
          विश्राम मांगती अपना,
          जिसका देखा था सपना-
निस्सीम व्योम तल नील अंक में-
अरुण ज्योति की झील बनेगी कब सलील? 
हे सागर संगम अरुण नील!

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