तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन.
विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक सी रही तब;
मैं मलय की बात रे मन.
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन.
चिर विषाद विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर वन की,
मैं उषा-सी ज्योति रेखा,
कुसुम विकसित प्रात रे मन;
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन.
जहां मरू ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती;
उन्हीं जीवन घाटियों की,
मैं सरस बरसात रे मन.
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन.
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जी रहा झुक;
इस झुलसते विश्व-दिन की,
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन.
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन.
चिर निराशा नीरधर में,
प्रतिच्छायित अश्रु-सर में;
मधुप मुखर मरंद मुकुलित,
मैं सजल जलजात रे मन.
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन.
______(कामायनी से)______