भजन बिनु जीवत जैसे
प्रेत।
मलिन मंद मति डोलत
घर-घर, उदर भरन के हेत॥
भजन बिनु जीवत जैसे
प्रेत।
मुख कटु-बचन नित्त
पर निंदा, संगति सुजस न लेत।
कबहुँ पाप करय पावत
धन, गाड़ि धूरि तिही देत॥
भजन बिनु जीवत जैसे
प्रेत।
गुरु ब्रहमन अरु संत-सुजन के, जात
न कबहुँ निकेत।
सेवा नहिं भगवंत - चरण की, भवन नील कौं खेत॥
भजन बिनु जीवत जैसे प्रेत।
कथा नहीं गुण-गीत सुजस हरि, सब काहू दुख देत।
ताकी कथा कहाँ सुनि
सूरज, बूड़त कुटुंब समेत॥
भजन बिनु जीवत जैसे
प्रेत।
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