बीती विभावरी जाग री !
अम्बर-पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी !
बीती विभावरी जाग री !
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधुमुकुल नवल रस गागरी !
बीती विभावरी जाग री !
अधरों में राग अमंद लिए,
अलकों मे मलयज बंद लिए,
तू अब तक सोई है आली-
आँखों में भरे विहाग री !
बीती विभावरी जाग री !
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