पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Monday 8 October 2012

लोल लहर

               उठ उठ री लघु लघु लोल लहर!

करुणा की नव अंगराई सी, 
मलयानिल की परछाई सी,
               इस सूखे तट पर छिटक छहर!
               उठ उठ री लघु-लघु लोल लहर!

शीतल कोमल चिर कम्पन सी,
दुर्ललित हठीले बचपन सी,
तू लौट कहाँ जाती है री-
               यह खेल खेल में ठहर-ठहर!
               उठ उठ री लघु-लघु लोल लहर!

उठ-उठ, गिर-गिर, फिर-फिर आती,
नर्तित पदचिह्न बना जाती,
सिकता की रेखाएं उभार-
               भर जाती अपना तरल - सिहर!
               उठ उठ री लघु लघु-लोल लहर!

तू भूल न री, पंकज वन में,
जीवन के इस सूनेपन में,
ओ प्यार पुलक से भरी ढुलक!
               आ चूम पुलिन के विरस अधर!
               उठ उठ री लघु लघु-लोल लहर!

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