उठ उठ री लघु लघु लोल लहर!
करुणा की नव अंगराई सी,
मलयानिल की परछाई सी,
इस सूखे तट पर छिटक छहर!
उठ उठ री लघु-लघु लोल लहर!
शीतल कोमल चिर कम्पन सी,
दुर्ललित हठीले बचपन सी,
तू लौट कहाँ जाती है री-
यह खेल खेल में ठहर-ठहर!
उठ उठ री लघु-लघु लोल लहर!
उठ-उठ, गिर-गिर, फिर-फिर आती,
नर्तित पदचिह्न बना जाती,
सिकता की रेखाएं उभार-
भर जाती अपना तरल - सिहर!
उठ उठ री लघु लघु-लोल लहर!
तू भूल न री, पंकज वन में,
जीवन के इस सूनेपन में,
ओ प्यार पुलक से भरी ढुलक!
आ चूम पुलिन के विरस अधर!
उठ उठ री लघु लघु-लोल लहर!
____________________