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Thursday 9 August 2012

दिल नहीं रहा

अर्ज़े नियाजे इश्क' के क़ाबिल नहीं रहा. 
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा. 

जाता हूँ दाग़े हसरते हस्ती लिए हुए,
हूँ शमअ-ए-कुश्ता' दरखुरे महफ़िल' नहीं रहा. 

मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं,
शायाने दस्त'-ओ-बाज़ू-ए-कातिल नहीं रहा. 

गो मैं रहा रहीने सितम हाए रोजगार', 
लेकिन तेरे ख़याल से गाफ़िल' नहीं रहा. 

बेदादे इश्क' से नहीं डरता मगर 'असद'
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा.

______________शब्दार्थ_______________
| अर्जेनियाजेइश्क=प्रेम कि अभिव्यक्ति | शमअ-ए-कुश्ता=चिराग जो बुझ रहा है | दरखुरे महफ़िल=सभा के लायक | शायाने दस्त=हाथों के लायक | बाजू-ए-कातिल=हत्यारे की हाथ | रहीने सितम हाए रोजगार=दुनियावी अत्याचारों का कैदी(गिरवी रखा हुआ) | गाफिल=बेखबर | बेदादे इश्क=मुहब्बत का अत्याचार |
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