लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दियार' में.
किसकी बनी है आलमे-नापायेदार' मे.
बुलबुल को पासबां से न सैयाद से गिला,
किस्मत में कैद थी लिखी फस्लेबहार' में
कह दो कि हसरतों से कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिले दागदार में.
इक शाखे गुल पे बैठके बुलबुल है शादमां',
कांटे बिछा दिए हैं दिले लालःजार' में.
उम्रे दराज मांग कर लाये थे चार दिन,
दो आरजू में कट गए दो इंतिजार में.
है कितना बदनसीब 'जफ़र' दफ्न के लिए,
दो गज जमीन भी मिल न सकी कू-ए-यार' में.
_______________शब्दार्थ________________
| दियार=जगह(देश/शहर) | आलमे नापायेदार=क्षणिक संसार | पासबां=रक्षक | सैयाद=शिकारी | फस्ले बहार=बसंत ऋतु | शाखे गुल=फूलों से लदी डाल | शादमां=प्रसन्न | दिले लालःजार=दिल का उपवन | कू-ए-यार=प्रिय की गली (तात्पर्य मादरे वतन)
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