महफ़िल से उठ जाने वालों,
तुम लोगों पर क्या इलज़ाम
तुम आबाद घरों के वासी,
मैं आवारा और बदनाम.
मेरे साथी खाली जाम...
दो दिन तुमने प्यार जताया,
दो दिन तुमसे मेल रहा.
अच्छा खासा वक़्त कटा और,
अच्छा खासा खेल रहा.
अब उस खेल का जिक्र ही क्या,
वक़्त कटा और खेल तमाम.
मेरे साथी खाली जाम...
तुमने ढूंढी सुख की दौलत,
मैंने पाला ग़म का रोग.
कैसे बनता, कैसे निभता,
ये रिश्ता और संजोग.
मैनें दिल को दिल से तोला,
तुमने मांगे प्यार के दाम.
मेरे साथी खाली जाम....
तुम दुनिया को बेहतर समझे,
मैं पागल था ख्वार हुआ.
तुमको अपनाने निकला था,
खुद से भी बेज़ार हुआ.
देख लिया घर फूंक तमाशा,
जान लिया मैंने अंज़ाम.
मेरे साथी खाली जाम...
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