पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Tuesday 3 July 2012

देस बिराना

रहना नहिं देस बिराना है. 

यह संसार कागद की पुडिया,
बूँद पड़े घुल जाना है. 
रहना नहिं देस बिराना है. 

यह संसार काँटों की बाड़ी,
उलझ उलझ मरि जाना है.
रहना नहिं देस बिराना है.

यह संसार झाड ओ झाँखर,
आग लगे बरि जाना है. 
रहना नहीं देस बिराना है. 

कहत कबीर सुनो भई साधो,
सतगुरु नाँव ठिकाना है. 
रहना नहिं देस बिराना है. 
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