रस गगन गुफा में अजर झरे.
बिन बाजा झंकार उठे जंह
समझि परे जब ध्यान धरे.
रस गगन गुफा में अजर झरे.
बिना ताल जंह कमल फुलाने
तेहि चढ़ि हंसा केलि करे,
बिन चन्दा उजियारी दरसे,
जंह तंह हंसा नजर परे.
रस गगन गुफा में अजर झरे.
दसवें द्वारे ताली लागे
अलख पुरुष जेंहि ध्यान धरे,
काल कराल निकट नहि आवे,
काम क्रोध मद लोभ जरे.
रस गगन गुफा में अजर झरे.
जुगन जुगन की तृषा बुझाती
करम भरम अध ब्याधि टरे,
कहै कबीर सुनो भई साधो,
अमर होय कबहूँ न मरे.
रस गगन गुफा में अजर झरे.
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