पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Saturday 7 July 2012

भज हंसा हरी नाम

भज हंसा हरिनाम, जगत में जीवन थोड़ा जी. 

काया आई पाहुनी, हंस आय महमान. 
पानी का सा बुलबुला थोड़ा सा उन्मान. 
बना कागज़ का घोड़ा जी. 
भज हंसा हरिनाम, जगत में जीवन थोड़ा जी.

मात पिता सुत बन्धुवा और दुलहनी नार. 
यही मिले बिछड़े सभी यह शोभा दिन चार. 
बना दो दिन का जोड़ा जी. 
भज हंसा हरिनाम, जगत में जीवन थोड़ा जी. 

राम भजन की हांसी करते, 
मन में राखे पाप.
पेट पलनियाँ वे चलें,
ज्यूँ जगल के सांप. 
नेह जिन हरि से तोड़ा जी. 
भज हंसा हरिनाम, जगत में जीवन थोड़ा जी. 

हाड़ जले ज्यूँ लाकडी, केस जले ज्यूँ घांस. 
जलती चिता यूँ देख के, भये कबीर उदास. 
नेह जिन हरि से जोड़ा जी. 
भज हंसा हरिनाम, जगत में जीवन थोड़ा जी. 
___________________________