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Wednesday 25 July 2012

गिरिफ्तारे वफ़ा

दोस्त गमख्वारी' में मेरी सई' फ़रमावेंगे क्या.
ज़ख्म के भरने तलक नाख़ून न बढ़ जावेंगे क्या. 

बेनियाज़ी' हद से गुज़री बन्दा परवर कब तलक,
हम कहेंगे हाले दिल और आप फ़रमावेंगे क्या.

हजरते नासेह' गर आवें दीद ओ दिल फर्शेराह'
कोई मुझको ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या.

आज वां तेगो कफन' बांधे हुए जाता हूँ मैं, 
उज्र' मेरा क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या. 

गर किया नासेह ने हमको कैद अच्छा यूँ सही, 
ये जुनुने इश्क के अंदाज छुट जावेंगे क्या.

ख़ाना जादे ज़ुल्फ़ है, जंजीर से भागेंगे क्यूँ, 
हैं गिरिफ्तारे वफ़ा जिन्दां से घबरावेंगे क्या.

है अब इस मामूरे' में कहत-ए-गम-ए-उल्फत' असद,
हमने ये माना कि दिल्ली में रहें, खावेंगे क्या. 

_______________शब्दार्थ_________________
|गमख्वारी=हमदर्दी | सई=सहायता | बेनियाज़ी=उपेक्षा | नासेह=धर्म की शिक्षा देने वाला | दीदोदिल फर्शेराह=आँख और दिल राह में बिछाना | तेगो कफ़न=तलवार और कफ़न | उज्र=बहाना | ख़ानाजादे जुल्फ=ज़ुल्फ़ का कैदी | जिंदां=कारागार | कहत-ए-गम-ए-उल्फत=मुहब्बत के दुखों का अकाल |
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