पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Thursday 5 July 2012

महा ठगिनी

माया महा ठगिनी हम जानी. 
निरगुन फांस लिए कर डोले,
बोलै मधुरी बानी.
माया महा ठगिनी हम जानी. 

केशव के कमला व्है बैठी
शिव के भवन भवानी,
पंडा के मूरति व्है बैठी
तीरथ में भई पानी.
माया महा ठगिनी हम जानी. 

जोगी के जोगिन व्है बैठी,
राजा के घर रानी.
काहू घर हीरा व्है बैठी,
काहू के कौड़ी कानी.
माया महा ठगिनी हम जानी. 

भगतन के भगतनि व्है बैठी,
ब्रह्मा के ब्रह्मानी,
कहत कबीर सुनो भई साधो,
यह सब अकथ कहानी.
माया महा ठगिनी हम जानी. 
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