पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Friday 22 June 2012

एकांत संगीत १०

       मिट्टी दीन कितनी हाय!

       ह्रदय की ज्वाला जलाती, 
       अश्रु की धारा बहाती, 
और उर-उच्छ्वास में यह कांपती निरुपाय!
       मिट्टी दीन कितनी हाय! 

       शून्यता एकांत मन की,
       शून्यता जैसे गगन की,
थाह पाती है न इसका मृत्तिका असहाय!
       मिट्टी दीन कितनी हाय!

       वह किसे दोषी बताये,
       और किसको दुःख सुनाये,
जब की मिट्टी साथ मिट्टी के करे अन्याय!
       मिट्टी दीन कितनी हाय!  

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