पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Friday 22 June 2012

एकांत संगीत ९

            तब रोक न पाया मैं आंसू. 

            जिसके पीछे पागल होकर, 
            मैं दौड़ा अपने जीवन भर, 
जब मृगजल में परिवर्तित हो, मुझ पर मेरा अरमान हंसा!
            तब रोक न पाया मैं आंसू. 

            जिसमें अपने प्राणों को भर,
            कर देना चाहा अजर-अमर,
जब विस्मृति के पीछे छिपकर, मुझ पर मेरा मधुगान हंसा!
            तब रोक न पाया मैं आंसू. 

            मेरे पूजन-आराधन को,
            मेरे सम्पूर्ण समर्पण को,
जब मेरी कमजोरी कहकर, मेरा पूजित पाषाण हंसा!
            तब रोक न पाया मैं आंसू. 

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