क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
बनकर अदृश्य मेरा दुश्मन,
बनकर अदृश्य मेरा दुश्मन,
करता है मुझ पर वार सघन,
लड़ लेने की मेरी हवसें मेरे उर के ही बीच रहीं!
क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
मिटटी है अश्रु बहाती है,
मेरी सत्ता तो गाती है,
अपनी? ना ना, उसकी पीड़ा की ही मैनें कुछ बात कही!
क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
चोटों से घबराउंगा कब,
दुनिया ने भी जाना है जब,
निज हाथ-हथौड़े से मैंने निज वक्षस्थल पर चोट सही!
क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
क्षतशीश मगर नतशीश नहीं.
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