पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Sunday 24 June 2012

एकांत संगीत १२

त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!

जब रजनी के सूने क्षण में, 
तन-मन के एकाकीपन में, 
कवि अपनी विह्वल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता, 
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!

जब उर की पीड़ा से रो कर, 
फिर कुछ सोच समझ चुप होकर,
विरही अपने ही हाथों से अपने आंसू पोंछ हटाता, 
त्राहि त्राहि कर उठता जीवन!

पंथी चलते-चलते थककर,
बैठ किसी पथ के पत्थर पर, 
जब अपने ही थकित करों से अपना विथकित पाँव दबाता, 
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन

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