शाम के सांवले चेहरे को निखारा जाए.
क्यों न सागर' से कोई चाँद उभारा जाए.
रास आया नहीं तस्कीन' का साहिल' कोई,
फिर प्यास को दरिया में उतारा जाए.
अब मेरे शहर में आयेगी सवारी किसकी,
अब किस उम्मीद पर राहों को संवारा जाए.
महरबां तेरी नज़र तेरी अदाएं कातिल,
तुझ को किस नाम से पुकारा जाए.
मुझ को डर है तेरे वादे पे भरोसा करके,
मुफ्त में यह दिले खुशफहम' न मारा जाए.
______________शब्दार्थ_________________
| सागर=जाम | तस्कीन=दिलासा/ढाढस | साहिल=किनारा | दिले खुशफहम=भ्रम पालने वाला |
____________________________________