जतन बिन मिरगा ने खेत उजारा.
पांच मिरग पच्चीस मिरगनी, ता में तीन चिकारा.
अपने अपने रस के भोगी, चुगते न्यारा न्यारा.
जतन बिन मिरगा ने खेत उजारा.
उठ के झुण्ड मृगा के आये, बैठे खेत मंझारा.
हो हो करत बली ले भागे मुख बाए रखवारा.
जतन बिन मिरगा ने खेत उजारा.
मारे मरे न टरे नहीं टारे, बिगरे नाहिं बिडारा.
अति परपंच महा दुखदाई, तीन लोक पचि हारा.
जतन बिन मिरगा ने खेत उजारा.
ज्ञान का भूला सुरति चूका, गुरू शब्द रखवारा.
कहै कबीर सुनो भाई संतों, बिरला भले सहारा.
जतन बिन मिरगा ने खेत उजारा.
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