पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Sunday 1 July 2012

प्यासी मछरी

पानी में मीन पियासी रे. 
मोये सुन सुन आवे हांसी रे.
पानी में मीन पियासी रे. 

जल-थल सागर पूर रहा है,
भटकत फिरे उदासी रे. 
पानी में मीन पियासी रे. 

आतमज्ञान बिना नर भटके, 
कोई मथुरा, कोई कासी रे.
पानी में मीन पियासी रे. 

गंगा जाय गोदावरी जाय
भक्ति बिन सब नासी रे. 
पानी में मीन पियासी रे. 

कहत कबीर सुनो भाई संतों
सहज मिले अविनासी रे. 
पानी में मीन पियासी रे. 
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