पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Friday 29 June 2012

एकांत संगीत १४

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ ! 

वृक्ष हों भले खड़े, 
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र - छाँह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत!
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ ! 

तू न थकेगा कभी!
तू न रुकेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ !
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ ! 

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ !
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ ! 
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