पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Friday 29 June 2012

एकांत संगीत १६

जीवन में शेष विषाद रहा !

कुछ टूटे सपनों की बस्ती,
मिटनेवाली यह भी हस्ती,
अवसाद बसा जिस खँडहर में, क्या उसमें ही उन्माद रहा !
जीवन में शेष विषाद रहा !

यह खँडहर ही था रंगमहल,
जिसमें थी मादक चहल-पहल,
लगता है यह खँडहर जैसे पहले न कभी आबाद रहा !
जीवन में शेष विषाद रहा !

जीवन में थे सुख के दिन भी,
जीवन में थे दुःख के दिन भी,
पर, हाय, हुआ ऐसा कैसे, सुख भूल गया, दुःख याद रहा !
जीवन में शेष विषाद रहा !
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