पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Thursday 21 June 2012

एकांत संगीत ८

           पूछता, पाता न उत्तर!

           जब चला जाता उजाला, 
           लौटती जब विहग-माला,
प्रात को मेरा विहाग जो उड़ गया था, लौट आया?
           पूछता, पाता न उत्तर!

           जब गगन में रात आती,
           दीप मालायें जलाती, 
अस्त जो मेरा सितारा था हुआ, फिर जगमगाया?
           पूछता, पाता न उत्तर!

           पूर्व में जब प्रात आता,
           भृंग दल मधुगीत गाता, 
मौन जो मेरा भ्रमर था हो गया, फिर गुनगुनाया?
           पूछता, उत्तर न पाता! 

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