पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Thursday 28 June 2012

इश्तिहार

हाथ आकर लगा गया कोई. 
मेरा छप्पर उठा गया कोई. 

लग गया इक मशीन से मैं भी,
शहर में ले के आ गया कोई. 

मैं खडा था की पीठ पर मेरी,
इश्तिहार इक लगा गया कोई. 

अब वो अरमान है ह वो सपने,
सब कबूतर उड़ा गया कोई. 

मेरा बचपन भी साथ ले आया, 
गाँव से जब भी आ गया कोई. 
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