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Tuesday 26 June 2012

सैर-ए-बुतखाना

न कटी हमसे शब् जुदाई की. 
कितनी ही ताकत आजमाई की.

रश्के दुश्मन' बहाना था सच है, 
मैंने ही तुमसे बेवफाई की. 

आये वह दस्त-गैर' में दिए हाथ,
आस' टूटी शिकस्ता-पाई' की. 

घर तो उस माहवश का दूर न था, 
लेक' ताला' ने नारसाई' की. 

मर गए, पर है बेखबर सैयाद,
अब तवक्को' नहीं रिहाई' की. 

मोमिन आओ तुम्हें भी दिखला दूं, 
सैर-ए-बुतखाना' में खुदाई' की.

_________________शब्दार्थ___________________
रश्के दुश्मन=शत्रु से इर्ष्या | दस्त-गैर=किसी और का हाथ | आस=आशा | शिकस्तापाई=हारजाना | माहवश=चाँद की तरह | लेक=लेकिन | ताला=भाग्य | नारसाई=पहुँचने से रोकना | तवक्को=भरोसा | रिहाई=छुटकारा | सैर-ए-बुतखाना=हसीनाओं के क्षेत्र की सैर | खुदाई=इश्वरता |
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