ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम.
पर क्या करें के हो गए नाचार' जी से हम.
बे-रोये मिस्ले-अब्र' न निकला गुबारे-दिल,
कहते थे उनको बर्के-तबस्सुम' हंसी से हम.
मुह देखने से पहले भी किस दिन वह साफ़ थे,
बे-वज्ह क्यों गुबार' रखें आरसी' से हम.
क्या दिल को ले गया कोई बेगाना-आशना'
क्यों अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम.
साहब ने इस गुलाम को आजाद कर दिया,
लो बंदगी कि छूट गए बंदगी' से हम.
_________________शब्दार्थ _____________________
नाचार = बेबस | मिस्लेअब्र = घटाओं कि तरह | बर्के तबस्सुम = जिसकी मुस्कान बिजली कि तरह हो | गुबार = मैल | आरसी = आईना | बेगाना-आशना = अनजान मित्र | बंदगी = चाकरी |
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