सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब सुप्त बडवानल जगा,
जब खौलने सागर लगा,
उमड़ी तरंगें उर्ध्वगा,
ले तारकों को भी डूबा, तुमने कहा- हो शीत, जम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब उठ पडा मारुत मचल,
हो अग्निमय, रजमय, सजल,
झोंके चले ऐसे प्रबल,
दें पर्वतों को भी उड़ा, तुमने कहा- हो मौन थम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब जग पड़ी तृष्णा अमर,
दृग में फिरी विद्युत् लहर,
आतुर हुए ऐसे अधर,
पी लें अटल मधु-सिन्धु को, तुमने कहा- मदिरा ख़तम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
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