पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Thursday 21 June 2012

एकांत संगीत ७

           सोचा, हुआ परिणाम क्या?

           जब सुप्त बडवानल जगा, 
           जब खौलने सागर लगा, 
           उमड़ी तरंगें उर्ध्वगा, 
ले तारकों को भी डूबा, तुमने कहा- हो शीत, जम!
           सोचा, हुआ परिणाम क्या?

           जब उठ पडा मारुत मचल,
           हो अग्निमय, रजमय, सजल,
           झोंके चले ऐसे प्रबल,
दें पर्वतों को भी उड़ा, तुमने कहा- हो मौन थम!
           सोचा, हुआ परिणाम क्या?

           जब जग पड़ी तृष्णा अमर, 
           दृग में फिरी विद्युत् लहर, 
           आतुर हुए ऐसे अधर, 
पी लें अटल मधु-सिन्धु को, तुमने कहा- मदिरा ख़तम!
           सोचा, हुआ परिणाम क्या? 

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