पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Wednesday 20 June 2012

एकांत संगीत ५

          किसके लिये, किसके लिये.

          जीवन मुझे जो ताप दे,
          जग जो मुझे अभिशाप दे, 
जो काल भी संताप दे, उसको सदा सहता रहूँ,
          किसके लिये, किसके लिये. 

          चाहे सुने कोई नहीं, 
          हो प्रतिध्वनित न कभी कहीं,
पर नित्य अपने गीत में, निज वेदना कहता रहूँ, 
          किसके लिये, किसके लिये. 

          क्यों पूछता दिनकर नहीं,
          क्यों पूछता गिरिवर नहीं,
          क्यों पूछता निर्झर नहीं,
मेरी तरह जलता रहूँ, गलता रहूँ, बहता रहूँ,
          किसके लिये, किसके लिये. 

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