पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Sunday 17 June 2012

निगहे इल्तिफात

पामाल' इक नजर में करार-ओ-सबात है.
उसका न देखना निग़हे इल्तिफात' है.

पैगाम्बर-रकीब' से होते हैं मशविरे,
सुनता नहीं किसी की यह कहने की बात है.

छुटकर कहाँ असीरे मुहब्बत' की जिन्दगी,
नासेह यह बन्दे-ग़म' नही, कैदे हयात' है.

क्या यूँ ही जायेगी मेरी फ़रियाद सरजनिश 
नासेह यह बन्दे गम नहीं कैदे हयात है. 

बदनामियों के डर से अबस' तुम चले कि मैं,
हूँ तैरा-रोज़' मेरी सहर भी तो रात है.

क्या माल है कि जान दे देते हैं दम' तुम्हें,
अगियार-बुलहवस' की यही कायनात है.

____________________शब्दार्थ______________________
पामाल = बर्बाद | करार-ओ-सबात = सुख और चैन | निगहे इल्तफ़ात = कृपा दृष्टी (कनखियों से देखने की अदा) |  पैगाम्बर-रकीब = संदेश लाने वाता शत्रु | असीरे मुहब्बत = इश्क का कैदी | बन्दे गम = दुःख की कैद | कैदे हयात = जीवन का बंधन |  सरजनिश =व्यर्थ | नासेह = उपदेशक | उम्मीदे नजात = छुटकारे की आशा | अबस = बेकार | तैरा रोज = बुरे दिनों वाला | दम = लालच | अगियार बुलहवस = लालची लोग |
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