पामाल' इक नजर में करार-ओ-सबात है.
उसका न देखना निग़हे इल्तिफात' है.
पैगाम्बर-रकीब' से होते हैं मशविरे,
सुनता नहीं किसी की यह कहने की बात है.
छुटकर कहाँ असीरे मुहब्बत' की जिन्दगी,
नासेह यह बन्दे-ग़म' नही, कैदे हयात' है.
क्या यूँ ही जायेगी मेरी फ़रियाद सरजनिश
नासेह यह बन्दे गम नहीं कैदे हयात है.
बदनामियों के डर से अबस' तुम चले कि मैं,
हूँ तैरा-रोज़' मेरी सहर भी तो रात है.
क्या माल है कि जान दे देते हैं दम' तुम्हें,
अगियार-बुलहवस' की यही कायनात है.
____________________शब्दार्थ______________________
पामाल = बर्बाद | करार-ओ-सबात = सुख और चैन | निगहे इल्तफ़ात = कृपा दृष्टी (कनखियों से देखने की अदा) | पैगाम्बर-रकीब = संदेश लाने वाता शत्रु | असीरे मुहब्बत = इश्क का कैदी | बन्दे गम = दुःख की कैद | कैदे हयात = जीवन का बंधन | सरजनिश =व्यर्थ | नासेह = उपदेशक | उम्मीदे नजात = छुटकारे की आशा | अबस = बेकार | तैरा रोज = बुरे दिनों वाला | दम = लालच | अगियार बुलहवस = लालची लोग |
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