पढने और संकलन का शौक ही इस ब्लॉग का आधार है... महान कवि, शायर, रचनाकार और उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ.... हमारे मित्र... हमारे गुरु... हमारे मार्गदर्शक... निश्चित रूप से हमारी बहुमूल्य धरोहर... विशुद्ध रूप से एक अव्यवसायिक संकलन जिसका एक मात्र और निःस्वार्थ उद्देश्य महान काव्य किवदंतियों के अप्रतिम रचना संसार को अधिकाधिक काव्य रसिकों तक पंहुचाना है... "काव्य मंजूषा"

Thursday 14 June 2012

कागज़ का शहर

पत्थर के खुदा वहाँ भी पाये. 
हम चाँद से आज लौट आये. 

दीवारें तो हर तरफ खडी हैं, 
क्या हो गये मेहरबान साये, 

जंगल की हवायें आ रही हैं, 
कागज़ का ये शहर उड़ न जाये. 

लैला ने नया जनम लिया है, 
है कैस कोई जो दिल लगाये. 

है आज ज़मीं का गुस्ल-ए-सेहत', 
जिस दिल में हो जितना खून लाये. 

सहरा सहरा लहू के खेमे, 
फिर प्यासे लब-ए-फरात' आये.

___________________________शब्दार्थ ___________________________________
गुस्ल-ए-सेहत=पवित्रता के लिये स्नान | लब-ए-फरात=शीतल मीठा पानी का कनारा (ईराक की एक नदी है - फरात)
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