पत्थर के खुदा वहाँ भी पाये.
हम चाँद से आज लौट आये.
दीवारें तो हर तरफ खडी हैं,
क्या हो गये मेहरबान साये,
जंगल की हवायें आ रही हैं,
कागज़ का ये शहर उड़ न जाये.
लैला ने नया जनम लिया है,
है कैस कोई जो दिल लगाये.
है आज ज़मीं का गुस्ल-ए-सेहत',
जिस दिल में हो जितना खून लाये.
सहरा सहरा लहू के खेमे,
फिर प्यासे लब-ए-फरात' आये.
___________________________शब्दार्थ ___________________________________
गुस्ल-ए-सेहत=पवित्रता के लिये स्नान | लब-ए-फरात=शीतल मीठा पानी का कनारा (ईराक की एक नदी है - फरात)
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