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Tuesday 12 June 2012

तुम गा दो

तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए.

मेरे वर्ण-वर्ण विश्रृंखल
चरण चरण भरमाये, 
गूँज गूँजकर मिटने वाले 
मैंने गीत बनाये
                    कूक हो गयी हूक गगन की 
                    कोकिल के कंठों पर, 
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये.

जब जब जग ने कर फैलाये
मैंने कोष लुटाया,
रंक हुआ मैं निज निधि खोकर
जगती ने क्या पाया, 
                    भेद न जिसमें मैं कुछ खोऊं
                    पर तुम सब कुछ पा जाओ 
तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाये.

सुन्दर और असुंदर जग में
मैनें क्या न सराहा, 
इतनी ममतामय दुनिया में 
मैं केवल अनचाहा, 
                    देखूं अब किसकी रूकती है 
                    आ मुझ पर अभिलाषा
तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाये. 

दुःख से जीवन बिता फिर भी 
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घड़ियों में 
भी तुमसे यह कहता, 
                    सुख की एक छांव पर होता 
                    है अमरत्व निछावर.
तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाये.
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये.

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